गोपालपुर की सड़क बनी नाला, दलित बस्ती बेहाल प्रशासन मौन जनता परेशान

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 गोपालपुर की दुर्दशा: सड़क बनी नाला, प्रशासन मौन – जनता बेहाल

📍 तिनेरी, मसौढ़ी 

🗓 19 जुलाई 2025

रिपोर्टर :सच तक पब्लिक न्यूज रंजीत प्रजापति


पक्की सड़क पर गंदा पानी नहीं, सरकारी चुप्पी बह रही है”

मसौढ़ी अनुमंडल के तिनेरी पंचायत अंतर्गत गोपालपुर गांव की सड़कें इन दिनों अपने अस्तित्व पर आंसू बहा रही हैं। पटना-गया रेलवे गुमटी संख्या 23 से होते हुए पटना-डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग तक जाने वाली मुख्य सड़क पिछले दो महीनों से घुटने भर गंदे पानी में डूबी हुई है, जिससे यह पहचानना मुश्किल हो गया है कि यह कोई सड़क है या गांव के बीच से बहता गंदा नाला।


करीब 5,000 की जनसंख्या वाले इस गांव के लिए यह जलजमाव एक स्थायी संकट बन चुका है। हर दिन इस रास्ते से बच्चे, महिलाएं, वृद्ध और स्कूली छात्र किसी तरह गुजरने की कोशिश करते हैं, लेकिन हर कदम पर दुर्घटना का डर बना रहता है।

दलित बस्ती की अनदेखी?

जिस मोहल्ले में यह जलजमाव है, वह हरिजन और दलित समुदाय का है। ग्रामीणों का आरोप है कि शायद इसी कारण प्रशासनिक उपेक्षा चरम पर है। यह सड़क कोई कच्चा रास्ता नहीं, बल्कि एक पक्की ढलाई वाली सड़क है, जो अब गंदे, बदबूदार और सड़ते हुए पानी के नीचे दब चुकी है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस गंदे पानी से न केवल आवागमन बाधित है, बल्कि घर-आंगन तक में बदबू और संक्रामक बीमारियों का खतरा भी मंडरा रहा है।

प्रशासन के आश्वासन बेमानी

ग्रामीणों ने इस गंभीर समस्या को लेकर अनुमंडल पदाधिकारी (SDO), मुखिया, वार्ड सदस्य और स्थानीय विधायक तक गुहार लगाई। कई बार निरीक्षण भी हुआ, तस्वीरें ली गईं, और आश्वासन भी दिए गए, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

हताश ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री कार्यालय को भी ईमेल कर गुहार लगाई, लेकिन वहां से भी कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया। लोगों का कहना है कि प्रशासन केवल "देखने" आता है, "सुनने" नहीं।

मानसून में बढ़ा खतरा

अब जब मानसून पूरी तरह सक्रिय हो चुका है, तो गांववालों की चिंता और बढ़ गई है। उन्हें डर है कि यह जलजमाव बारिश के पानी के साथ मिलकर उनके घरों तक न पहुंच जाए। इससे राशन, फर्नीचर और बच्चों की किताबें तक नष्ट हो सकती हैं, साथ ही बीमारियों का भयावह दौर भी शुरू हो सकता है।

जनता अब भगवान के भरोसे

प्रशासनिक व्यवस्था से मोहभंग हो चुके गांववाले अब कहते हैं:

शायद हम गरीब और दलित हैं, इसलिए हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही। अब भगवान ही सहारा हैं।"

कहां है जवाबदेही?

जब प्रशासन को समस्या की पूरी जानकारी है, तो उसका समाधान क्यों नहीं किया जा रहा है? क्या यह जातीय भेदभाव और प्रशासनिक असंवेदनशीलता का मामला है?

गोपालपुर के निवासी आज भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कोई जिम्मेदार अधिकारी या जनप्रतिनिधि उनकी पुकार सुनेगा और उन्हें इस 'सड़क वाले नाले' की पीड़ा से मुक्ति दिलाएगा



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