📰 एमजीएम कॉलेज पर अवैध कब्जे का बड़ा खुलासा, बीजेपी नेता दिलीप जायसवाल पर गंभीर आरोप
🔸 पीके ने साधा प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर निशाना, पीड़ित परिवार ने लगाई न्याय की गुहार
📍 पटना | दिनांक: 06 जुलाई 2025
✍️ सच तक पब्लिक न्यूज रंजीत प्रजापति
बिहार की राजनीति में बुधवार को उस समय सनसनी फैल गई जब जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके) ने एमजीएम कॉलेज को लेकर एक बड़ा खुलासा किया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता दिलीप जायसवाल ने इस ऐतिहासिक कॉलेज पर अवैध कब्जा कर रखा है और उन पर हत्या जैसे संगीन आरोप भी लगे हैं।
प्रशांत किशोर ने एक प्रेस वार्ता में कहा –
"यह सिर्फ कॉलेज पर कब्जा नहीं है, यह कानून और संविधान के साथ किया गया क्रूर मज़ाक है। यह सवाल देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और न्याय प्रणाली पर भी है।"
उन्होंने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से सवाल पूछा –
"जब एक सत्ताधारी पार्टी का नेता ऐसे गंभीर आरोपों से घिरा है, तो केंद्र और राज्य सरकारें चुप क्यों हैं? क्या यह चुप्पी किसी बड़े राजनीतिक संरक्षण की ओर इशारा नहीं करती?"
पीके ने यह भी मांग की कि दिलीप जायसवाल को तुरंत पद से इस्तीफा देना चाहिए और इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
🔹 पीड़ित परिवार ने सुनाई आपबीती
इस मामले में कॉलेज के पूर्व प्राचार्य सरदार मोलेश्वर सिंह का परिवार भी सामने आया। उनके पुत्र गुरुदयाल सिंह और पुत्री अमृत कौर ने खुली मंच पर पीके से न्याय की गुहार लगाई।
उनका कहना है –
"हमारे पिता को साजिश के तहत एमजीएम कॉलेज से बाहर निकाल दिया गया और जबरन कॉलेज पर कब्जा कर लिया गया। आज हमारा पूरा परिवार भय और अन्याय के बीच जी रहा है। हमें अपनी जान का खतरा है।"
गुरुदयाल सिंह की आँखों में आँसू थे, लेकिन आवाज़ में न्याय की मांग थी। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ उनके परिवार की नहीं, बल्कि उन हजारों नागरिकों की लड़ाई है जो सालों से सिस्टम के अन्याय का शिकार हो रहे हैं।
🔸 जन सुराज की मांगें:
- दिलीप जायसवाल को पद से तत्काल हटाया जाए
- एमजीएम कॉलेज प्रकरण की उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच कराई जाए
- सरदार मोलेश्वर सिंह के परिवार को सुरक्षा दी जाए
- केंद्र व राज्य सरकारें इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करें
इस खुलासे ने बिहार की राजनीति में तूफान ला दिया है। सवाल अब केवल कॉलेज तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राजकीय संरक्षण, संस्थागत न्याय और लोकतांत्रिक जवाबदेही पर उठाए जा रहे हैं।
अब देखना यह है कि क्या सरकारें इस मामले को गंभीरता से लेंगी या यह मामला भी अन्य राजनीतिक विवादों की तरह धीरे-धीरे दबा दिया जाएगा।


