🔹 अखाड़ों और ताजिया जुलूस के साथ दिखी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, प्रशासन रहा सतर्क
📍 स्थान: भगवानगंज, पटना | 📅 तारीख: 6 जुलाई 2025
✍️ रिपोर्ट: विशेष संवाददाता
🔻 ताजिया, जुलूस और अखाड़ों के साथ श्रद्धा और शौर्य का संगम
भगवानगंज थाना क्षेत्र अंतर्गत भगवानगंज बाज़ार में मोहर्रम का पर्व इस वर्ष भी शांति, सम्मान और उत्साह के साथ मनाया गया। ताजिया जुलूस के दौरान बाजार में पारंपरिक अखाड़ों का आयोजन भी किया गया, जिसमें युवाओं ने लाठी, तलवार और शस्त्रकला का प्रदर्शन कर लोगों को रोमांचित कर दिया।
स्थानीय प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहा, क्षेत्र में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। हर चौक-चौराहे पर पुलिस बल तैनात रहा, जिससे पूरे कार्यक्रम में अनुशासन और शांति बनी रही।
⚔️ क्या है मोहर्रम में अखाड़े का महत्व?
अखाड़े, मोहर्रम की सांस्कृतिक परंपरा का अहम हिस्सा हैं। ये केवल शारीरिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि शौर्य, अनुशासन और आत्म-संयम का प्रतीक होते हैं।
मोहर्रम के अवसर पर युवाओं द्वारा लाठी-डंडा, तलवारबाज़ी, भाले और अन्य पारंपरिक शस्त्रों से शस्त्रकला का प्रदर्शन किया जाता है, जो हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदान को श्रद्धांजलि देने का प्रतीक है।
यह परंपरा कर्बला के युद्ध की याद में निभाई जाती है, जहाँ अन्याय के खिलाफ डटकर खड़े होने का संदेश निहित है।
🕌 मोहर्रम क्यों मनाया जाता है?
मोहर्रम इस्लामिक नववर्ष का पहला महीना है, लेकिन यह खुशी का नहीं, शोक और बलिदान की याद का महीना है।
इस दिन 610 ई. में इराक के कर्बला मैदान में हजरत इमाम हुसैन, पैग़म्बर मोहम्मद साहब के नवासे, को उनके 72 साथियों के साथ यज़ीद की सेना द्वारा शहीद कर दिया गया था।
हुसैन ने अन्याय और तानाशाही के खिलाफ लड़ाई लड़ी, और अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। मोहर्रम का महीना उनकी कुर्बानी और सिद्धांतों की याद में मनाया जाता है।
📜 मोहर्रम का संदेश क्या है?
मोहर्रम केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए एक नैतिक और मानवीय मूल्य का प्रतीक है। इसका संदेश है:
- ✊ अन्याय के खिलाफ खड़े रहना
- 🕊️ धर्म और न्याय के लिए बलिदान देना
- 🤝 साम्प्रदायिक सौहार्द और एकता को मजबूत करना
- 🧘 संयम, श्रद्धा और आत्म-नियंत्रण को अपनाना
मोहर्रम हमें सिखाता है कि सत्य और न्याय की राह कठिन हो सकती है, लेकिन उसका अंत सम्मान और अमरता में होता है।
👥 सामाजिक सौहार्द की अनोखी मिसाल
भगवानगंज में मोहर्रम के आयोजन में स्थानीय हिन्दू-मुस्लिम समुदाय ने मिलकर सहभागिता निभाई।
ताजिया की देखरेख, अखाड़े की व्यवस्था और स्वागत में सभी धर्मों के लोगों ने साथ मिलकर सांप्रदायिक सौहार्द की सुंदर मिसाल पेश की।


