मालतीधारी कॉलेज, नौबतपुर में क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों पर राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न

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  भारत की क्षेत्रीय भाषाओं एवं बोलियों पर मालतीधारी कॉलेज, नौबतपुर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

पटना, 04 सितम्बर 2025।

रिपोर्टर:-सच तक पब्लिक न्यूज रंजीत प्रजापति

मालतीधारी कॉलेज, नौबतपुर के हिन्दी विभाग की ओर से गुरुवार को ‘भारत की क्षेत्रीय भाषाओं एवं बोलियों’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन बहुउद्देशीय सभागार में किया गया। इस मौके पर देशभर से आए प्रख्यात विद्वानों, प्राध्यापकों, शोधार्थियों और छात्रों ने भाग लेकर भारतीय भाषाई धरोहर पर विचार-विमर्श किया।

कार्यक्रम का उद्घाटन प्रो. (डॉ.) प्रवीण कुमार, पूर्व प्राचार्य, ए.एन. कॉलेज, पटना एवं प्रो. (डॉ.) देवेन्द्र प्रसाद सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, ए.एन. कॉलेज, पटना ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया।


अपने उद्घाटन वक्तव्य में दोनों अतिथियों ने कहा कि “भारत की असली पहचान उसकी भाषाई विविधता में है। यह धरोहर हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी हुई है और उच्च शिक्षा संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे इसके संरक्षण और संवर्धन की दिशा में ठोस कदम उठाएँ।”

इसके बाद तकनीकी सत्र की शुरुआत हुई, जिसमें कई विशिष्ट वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए।

डॉ. उदयराज उदय, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, महिला कॉलेज, खगौल, पटना

डॉ. हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, मालतीधारी कॉलेज, नौबतपुर

डॉ. मोहन कुमार, सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, महाराजा सुहेलदेव विश्वविद्यालय, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

डॉ. कुमारी भारती, दर्शनशास्त्र विभाग, मालतीधारी कॉलेज, नौबतपुर

श्री कुमार मंगलम, युवा साहित्यकार, पटना



वक्ताओं ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाएँ और बोलियाँ केवल संवाद का माध्यम भर नहीं हैं, बल्कि वे लोकजीवन, परंपरा और संस्कृति की आत्मा हैं। इनके बिना भारत की अस्मिता अधूरी है। 


महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. (डॉ.) अखिलेश कुमार ने अपने संबोधन में कहा, “भारतीय भाषाओं और बोलियों का संरक्षण एवं संवर्धन उच्च शिक्षा संस्थानों की सामाजिक जिम्मेदारी है। नई पीढ़ी को इस दिशा में जागरूक करना आज समय की महत्वपूर्ण मांग है।”

कार्यशाला का संचालन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनीषा शंखधार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अभय कुमार झा ने प्रस्तुत किया। पूरे आयोजन में हिन्दी विभाग के सभी प्राध्यापकों एवं छात्रों की सक्रिय भूमिका रही।


एक दिवसीय इस कार्यशाला का समापन इस विचार के साथ हुआ कि क्षेत्रीय भाषाओं एवं बोलियों का संवर्धन ही भारत की सांस्कृतिक एकता और सामाजिक मजबूती का मूल आधार है।




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